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कविता

याद रहेगा

त्रिलोचन


याद रहेगा
मुझको वह क्षण याद रहेगा

              जीवन के दस बीस बरस क्या,
              आते और चले जाते हैं
              घड़ियों, दिनों, महीनों के क्रम
              गत संवत में खो जाते है
              कल ही जो पहाड़ लगता था
              कण में कैसे आज खो गया
              कैसे प्रखर काल की धारा
              छोटे से क्षण दिखलाते हैं
जिससे तन मन एक हो गया क्या वह पल आबाद रहेगा

              कल्प कल्प का भी तो जीवन
              लोक-कल्पना में आया है
              भूतकाल ने अपना जीवन
              खंड खंड करके पाया है
              अश्रु हास दो ही तो संसृति
              के पथ पर सच्चे साथी हैं
              कभी सत्य इससे आया है
              कभी सत्य उससे आया है
प्राप्ति प्राण की पूर्ण साधना है उसका संवाद रहेगा

 


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